होरी कहिन
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१--
र् वावत कहै मरौ सरऊ । चौबीस घंटे सीना जोरी
ऊटपटाँग करौ सरऊ ।। मौत से कुछौ डरौ सरऊ ।
आगी अइस रोज मूतत त्यौ, उइ तौ आसमान छुइ ल्याहैं,
बोयो जइस भरौ सरऊ । तुम बस परे जरौ सरऊ ।
जूता बजिहैं दोउ ओर ते , भस्मासुर सा तुमहू होरी ,
बीच मा अउर परौ सरऊ । अपने हाथ बरौ सरऊ ।
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२---
पत्रकार पर व्यंग्य करूँ क्यों ?
चौथे खंभे दबूँ मरूँ क्यों ??
दहशतगर्द शरीर संहारें ,
मैं हूँ रूह अरे डरूँ क्यों ?
क़र्ज़ लिया था तुमने तुमने ,
मैं ही सबका क़र्ज़ भरूँ क्यों ?
आग लगाई थी तो जलिये,
होरी मैं ही आग जरूं क्यों ?
गंगा तो सबका तारे है,
तुम भी तरौ मैं ही तरूं क्यों?
होरी माँ की बलिवेदी पर,
प्राण न्योछावर करूं डरूँ क्यों ?
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३--
चल अंगारों पर मत डोल,
हल्ला बोल, हल्ला बोल ।
समझा धरा गगन को मोल,
हल्ला बोल , हल्ला बोल ।
दिखे हंस है काला कौआ ,
लगता है नेता है ।
उसकी दे तू धोती खोल ,
हल्ला बोल , हल्ला बोल ।।
प्रजातंत्र का नाम और,
शासन परिवारों का ?
ढोल के भीतर भारी पोल ,
हल्ला बोल , हल्ला बोल ।।
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राज कुमार सचान होरी
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