होरी कहिन
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१--
राजनीति के व्यूह में , फँसा राष्ट्र अभिमन्यु ।
नेता दुर्योधन सदृश , करें अनीति जघन्य ।।
करें अनीति जघन्य , महाभारत रचते हैं ।
युद्धों में बस काग,गिद्ध ,निशिचर बचते हैं।।
होरी अब तो बन्द करो , ओछा अनीति ।
नहीं, ग़ुलामी आ जाये , इस राजनीति ।।
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२--
एकत्रित होने लगे , कालोनी के चोर ।
आपस में मिल बाँट कर, खायें करते शोर ।।
खायें करते शोर , सभी मौसेरे भाई ।
ख़ुश हैं मोटी मोटी पा , घनघोर कमाई ।।
साहूकार अकेले होकर, दिखते हैं असहाय ।
चोर तिजोरी लूट कर ,गये सभी कुछ खाय।।
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३--
उत भी जंगल राज है , इत भी जंगल राज ।
होरी दिन कैसे कहो , जनता देखे आज ।।
जनता देखे आज , दुशासन सीना जोरी ।
टूट गई है आज , सुशासन वाली डोरी ।।
ख़ुश हैं चारों ओर ,भेड़िये ,चीते आज ।
होरी फैला देश में , देखो जंगल राज ।।
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राज कुमार सचान होरी
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