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होरी के व्यंग पात्र हैं पत्रकार, सम्पादक, कवि व साहित्यकार

साहित्य जगत मंे अनोखी पहचान बनाये खासकर काव्य मंचों की शोभा बढ़ा रहे स्थापित दोहाकार, व्यंग के सशक्त हस्ताक्षर, प्रशासनिक पद पर रहते हुए भी निर्भीक रचनाओं को प्रस्तुत करने वाले चर्चित कवि वर्तमान में अपर आयुक्त आजमगढ़ श्री राजकुमार सचान ‘होरी’ को पुरातन काव्य रचनाओं की घिसीपिटी मान्यताओं पर आज के परिवेश में सार्थकता के साथ प्रहार करते हुये सबने सुना है तथा उनकी 30 से अधिक प्रकाशित पुस्तकों में पढ़ा व पाया गया है कि वे व्यंग रचनाओं में पूरी निर्भीकता के साथ किसी वर्ग को अनदेखा नहीं करते अब तक राजनेताओं व राजनीति पर औेर समाज में व्याप्त कुरीतियों तथा बढ़ती अन्ग्रेजियत आदि पर ही ज्यादातर लोग व्यंग लिखते रहे हैं लेकिन राजकुमार सचान ‘होरी’ जो कि पत्रकारिता से भी पहले जुड़े रहें हैं ने जो व्यंग लेख लिखे हैं वे उन लोगों पर हैं जो अब तक दूसरों पर व्यंग लेख लिखते व प्रकाषित करते रहे हैं। श्री होरी के व्यंग पात्र हैं पत्रकार, सम्पादक, कम्पीजीटर, समीक्षक तथा लेखक कवि एवं साहित्यकार।
निर्द्वंद कवि ‘होरी’ इन तमाम विशेषताआंे को समेटे गद्य लेखक के रूप में भी काफी चर्चा में है देष के अलावा वे विदेषों में आयोजित कई साहित्यक कार्यक्रमों में भी हिस्सा ले चुके है तथा सममानित भी किये जा चुके हैं। हम भारत के लोग,हम कहां ,अनवरत ,शब्द-शब्द के दंश सहित दर्जनो पुस्तकें वे अब तक लिख चुके है उनके गम्भीर वैचारिक लेखों की कई किताबें डायमण्ड प्रकाषन दिल्ली व अन्य प्रकाषनों से प्रकाषित हो चुकी है। पूर्व की भांति बच्चों के लिए भी श्री होरी ने सरल सुबोध कहानियेां व कविताओं की पुस्तकें लिखी हैं। उन्होने भारतीय आदर्ष और परम्परा को महत्व देते हुये आम भारतीय को ‘हाइकु‘ की आयातित मानसिकता से मुक्त होने का आवाहन करते हुये काइकु’ का सम्पादन कर न केवल एक नई विधा को जन्म दिया बल्कि खासी ख्याति भी पाई । हाल ही में उनके द्वारा रचित ‘बाबा भीमराव अम्बेडकर चरित मानस’ काव्यग्रंथ व उसका सीडी कैसेट भी मार्केट में लांच हुआ जिसे उत्तर भारत व दक्षिण भारत में खासी लोकप्रियता भी मिल रही है । इस काव्यग्रंथ के दिल्ली स्थित ‘हिन्दी भवन ’ में सम्पन्न विमोचन कार्यक्रम में संगीतकार रवीन्द्रजैन भी उपस्थित रहे । होरी की प्रेरणा से सामाजिक संस्थाओं सुखरानी फाउण्डेशन, व भारतीय राष्ट्र भाषा विकास संगठन ने मिल कर हिन्दी मनीषियों को सम्मानित कर हिन्दी साहित्य जगत को उत्साहित करने का भी पुनीत कार्य किया है। होरी ने हिन्दी जगत संकीर्ण नहीं हैं इसे अपनी पुस्तकों को उर्दू अनुवाद में प्रकाशित कर सिद्ध किया है और अब उर्दू शायरों को भी ‘होरी’ पत्रिका में स्थान देकर खुली विचार धारा का प्रमाण दे रहे है।यह होरी की ईमानदारी है कि व्यंग लेखन में उन्होंने स्वयं अपने आपको भी नहीं बक्शा न तो लेखक के रूप में और न अधिकारी के रूप में । जो व्यक्ति स्वयं को भी न छोडे़ उससे अधिक स्पष्टवादी साहित्यकार कौन हो सकता है। उनके द्वारा ह्दय की बात को निर्भीक रूप से कह देना उनके भीतर छुपे साहित्यकार को दर्शा देता है । देशज शब्दावली व मुहाबरों का प्रयोग उनको साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित करता है तथा विचारों को सरलता से सामान्य जगत से गहनता में उतार ले जाने वाला कौशल उनकी कलात्मक क्षमता एवं विद्वता को भी प्रमाणित करता है। श्री होरी की जीवन शैली में उनका साधारण रहन सहन एवं कथन के अनुकूल आचरण यह सिद्ध करता है कि होरी मात्र साहित्यकार नहीं उनके व्यक्तित्व में महान व्यक्ति के गुण भी मौजूद है।
कविता का कोई विकल्प नहीं -‘होरी’
लोगों की भावनाओं को छूने और उनके विचारों को आंदोलित करने वाली कविता भले ही आज दुनिया भर में छोटे से वर्ग तक सिमटती जा रही है लेकिन समीक्षकों के अनुसार साहित्य की इस विधा का कोई विकल्प नहीं हो सकता । प्रस्तुत है कविता की भूमिका,महत्व व लोकप्रियता पर वरिष्ठ साहित्यकार कवि एवं प्रषासनिक अधिकारी वर्तमान में अपर आयुक्त आजमगढ़ राजकुमार सचान ‘होरी’ से जनजागरण मीडिया मंच के महासचिव रिजवान चंचल द्वारा का गई वार्ता के प्रमुख अंष ।
होरी जी कविता का पाठक वर्ग कम होता जा रहा है ऐसा क्यों ?
देखिये अच्छे काव्य को समाज के हर वर्ग तक लाने की जरूरत है कविता के पाठक को साहित्य में सहृदय कहा जाता है और यह वर्ग आज से नहीं कालिदास के समय से कम संख्या में ही रहा है। कविता के पाठकों में उस समय वृद्धि होती है जब कविता किसी आंदोलन से जुड़ जाती है। आजादी के आंदोलन के समय यही स्थिति उत्पन्न हुई और कविता लोगों से सीधे जुड़ गई। लेकिन इतिहास में ऐसे दौर अधिक समय तक नहीं चलते। आज हमारा समाज आंदोलन विहीन है इसलिए कविता भी एक सीमित वर्ग तक सिमट कर रह गई है।
आधुनिक दौर के शीर्ष कवियों की रचनाओं को व उनके नाम तक से अधिकतर लोगों के परिचित नहीं होने के बारे में आपका क्या कहना है?
श्री सचान ने कहा कि ऐसा नहीं है कवियों और उनकी रचनाओं को जानने वाले लोग छोटे-छोटे कस्बों तक में मिल जाते हैं भले ही उनकी संख्या कम हो। श्री सचान ने कहा कि जिस बाजारवाद की चर्चा आज समाज में प्रासंगिक हो उठी है कविता में आज से दो दशक पहले ही इसके बारे में चिंताएं प्रकट की जाने लगी थीं। उन्होंने कहा कि पुरानी पीढ़ी के कवियों के साथ भी यही स्थिति होती थी लेकिन चूंकि उनकी रचनाएं पाठ्यक्रमों में शामिल हैं इसलिए लोग उनके नामों से भलीभांति परिचित हैं। उन्होंने कहा कि बहुतों का यह मानना काफी हद तक सही है कि आज की कविता न तो उनकी भाषा में लिखी जा रही है न ही समसामयिक मुद्दे उठा रही है तथा संप्रेषणीयता का भी अभाव है।
वर्तमान में कविता के दो वर्ग हैं धनाड्य वर्ग जिसकी कविता पत्र पत्रिकाओं में छाई हुई है व काव्य पुस्तकों का रुप लिये हुये है दूसरा वर्ग वह जिनकी रचनायें एक सीमित दायरे में ही पढ़ी और सराही जाती है तथा विपन्नता के चलते वे न तो ज्यादा छप पाते है और न ही काव्य पुस्तक ही छपवा पाते हैं आप का क्या दृस्टिकोण है?
जबाब में श्री होरी ने कहा कि पूर्व से ही यहां वाचिक कविता की लंबी परंपरा रही है। लेकिन आज इस परंपरा में भी काफी हद तक विकृतियां आई हैं मंचों पर लोग हास्य के नाम पर फूहड़ कविताएं और गीत सुना रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले आम स्कूल कालेजों में कवि सम्मेलनों का आयोजन होता था लेकिन आज इनका आयोजन बेहद महंगा हो जाने के कारण सिर्फ धनी वर्ग ही इन्हें आयोजित करवा पाता है यह बात सही है किन्तु धनी वर्ग की साहित्य में खास रूचि नहीं होती और आयोजकों की रूचि के अनुसार कवि सम्मेलनों में फूहड़ कविताओं का बोलबाला रहता है। उन्होंने कहा कि पत्र पत्रिकाओं रेडियो और टेलीविजन में कविता को अधिक स्थान देकर कविता को उसका सही स्थान दिलाया जा सकता है।
महत्वपूर्ण प्रषासनिक पदों पर रहते हुये भी होरी जी आप लेखन का समय कैसे और कब निकाल पाते है ?

अक्सर मैं लेखन का कार्य यात्राओं में व गाड़ी में चलते समय करता रहता हूं मै समय को अनर्गल वार्ताओं व्यक्गित बैठकों में जाया कतई नही करता प्रषासनिक कार्य दायित्वों के निपटाने के बाद जो भी समय मिलता है वह साहित्य सृजन ही देता हूं।

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