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Saturday, April 30, 2011

घर घर जाएँ, छुआछूत मिटाएँ, राष्ट्रीयता जगाएं

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जाति तोड़ो राष्ट्र जोड़ो अभियान के तहत पूरे देश में संस्था के कार्यकर्ताओं द्वारा अस्प्रस्य और दलित कहे जाने वाले परिवारों के घर घर जाकर उनके साथ समरसता स्थापित करने का कार्यक्रम चलाया जा रहा है! कार्यकर्ताओं द्वारा उनके साथ उनके घरों में बैठकर भोजन ग्रहण कर उनके दुःख सुख में सहभागिता करते हुए राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने का आवाहन किया जा रहा है !
संस्था के कार्यकर्ताओं द्वारा दलित बाहुल्य मुहल्लों में गोष्ठियां भी की जा रही हैं और अन्तरजातीय विवाह करने वाल को सम्मानित किया जाने हेतु भी कार्यक्रम किये जा रहे हैं
आइये हम सब मिलकर सदियों से चली आ रही समस्या को जड़ से मिटाए
भाई भाई को गले लगायें
राष्ट्रीय एकताए सामाजिक समरसता बढाएं

Thursday, April 28, 2011

आयें, जातियां मिटायें, समरसता लायें

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राज कुमार सचान‘होरी’
राष्ट्रीय संयोजक -‘जाति तोड़ो राष्ट्र जोड़ो
भारत में प्राचीन काल में कोई वर्ण जाति नहीं थी । सभी मानव सामान थे फिर ऐसा काल आया जब धर्माधारित व्यवस्था वर्ण व्यवस्था का जन्म हुआ जिसमे वर्ण बा्रम्हण, क्षत्रिय, वैष्य ,शूद्र की स्थापना कर्म के आधार पर की गयी । गुण और कर्म के आधार पर भेद तर्कसंगत है क्यों कि हर व्यक्ति में गुण और कर्म के आधार पर प्रकृति की और से अन्तर दृश्टिगोचर होता है परन्तु कालंातर में समाज रुढ़ होने लगा और कतिपय चतुर और स्वार्थी तत्वों ने वर्ण व्यस्था और इसके अंदर उत्त्पन्न हुई अनगिनत जातियों को जन्म के आधार पर बना दिया।
जन्माधारित जातियों के होने पर ब्राह्मण का मूर्ख, दरिद्र, असिाक्षित संस्कारहीन पुत्र भी ब्राह्मण होने लगा । क्षत्रिय की संतान भले ही शक्तिहीन क्षीण क्लीव हो क्षत्रिय ही बनी रही । वैष्य निर्धन, व्यापारहीन होने लगे। शूद्र संताने कितनी भी विद्वान, शिक्षित गुणी हुई पर ब्रह्मण न बन सकीं,बीर बलशली होकर भी क्षत्रिय न बन सकीं,कुशल व्यवसायी होकर भी वैश्य न बन सके। ।
धीरे -धीरे जन्म के आधार पर भारत में जातियों के अंदर जातियां होते होते इतनी जातियां हो गयीं कि यह देष ही जातियों का देष बन कर रह गया । जातियां भी सामाजिक रूप से इतनी कठोर की विष्व के किसी अन्य देष में दूसरा उदाहरण मिलना मुस्किल है । बस व्यक्ति अपनी जातियों में बंध कर रह गये,सिमट कर रह गए । रोटी बेटी, हुक्का पानी के सम्बन्ध सीमित हो गए । एक दूसरी जातियों में परस्पर सामाजिक आदान प्रदान बंद हो गए।
इसी दौरान इनमे उंच नीच का भाव पैदा किया गया । अश्प्रश्यता (छुआछूत)की नीव पड़ी । अब सम्पूर्ण राष्ट्र में एक ही राष्ट्र का नागरिक होने के वावजूद इतनी दूरियां हो गयीं कि भाई-भाई का शत्रु बन गया । सामाजिक समरसता छिन्न भिन्न हो गयी। राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रवाद की भावना बिखर गयी।
हिन्दू समाज में तो जाति-व्यस्था ने नंगा नाच किया ही जिससे इतिहास के पन्ने भरे पड़ें है, इसी के प्रभाव से इस्लाम और इसाई सिक्ख धर्म भी बच न सके। वहां भी कम ज्यादा जातियां बन गयी उच नीच की खाइयाँ निर्मित हो गयी।
दशा ऐसी हो गई कि मुझे कहना पड़ा-
‘आज देष में न कोई भारतीय है ।
जो भी है, जहाँ भी है, जातीय है ’’।।
आज 1947 की स्वतंत्रता के पश्चात भी जातिवाद की आग में राजनीत ने घी का काम किया और जातिवाद की आग में राष्ट्र धू धू कर जलने लगा । राजनीतिक दलों में सिद्वान्तों के स्थान पर जातियों ने अपना सिक्का जमा लिया। आज स्थित यह है कि हम अपने फैसले जातियों को मन में रखकर लेने लगे , जीवन का कोई भी क्षेेत्र हो हमारे निर्णय जातियों के आधार पर होने लगे ।
देष में भाईचारा, समरसता ,एकीकरण, राष्ट्रªवाद सबकी सबसे बड़ीशत्रु जातियां बन गयीं। हमारे देष में जातिगत दूरियों के कारण राष्ट्रीय एकता सबल नहीं हो पा रही हेै। विदेषी आक्रान्ताओं ने समय समय पर हमारी इसी कमजोरी का लाभ उठाकर हमे पददलित किया, गुलाम बनाया। हम स्वाभिमान की लडाई में जातियों में बटे होने के कारण लगातार हारते रहे।
राष्ट्रªीय स्वाभिमान के तत्व की कमी के कारण ही हमारे देष में भ्रष्टाचार, भाई- भतीजावाद, नैतिक पतन, मिलावटखोरी अपने चरम पर हैं । अगर इन बुराइयों को मिटाना है तो हमे सर्वप्रथम राष्ट्रªवाद जगाना होगा और इसके लिये जातिवाद को मिटाना होगा । जातियों को तोड़ना होगा । इसीलिये हमारा अभियान है -
जाति तोड़ो राष्ट्र जोड़ो
सतीप्रथा , दहेज और बालविवाह जैसी सामाजिक कुरीतियाँ (सोसलएवेल्स)आज ऐसे ही दम नहीं तोड़ रही बल्कि उनके विरुद्ध समाज को जाग्रत होंना पड़ा है। युद्ध करना पड़ा है। इनको समाप्त करने के लिए कानून बनाने पड़े और उन कानूनों का कड़ाई से पालन करना पड़ा । ठीक इसी प्रकार जातियों और जतिआधारित व्यस्था के विरुद्ध समाज को जाग्रत होकर युद्व छेड़ना पड़ेगा और कानूनों का निर्माण करते हुये उन्हे कड़ाई से लागू करना पड़ेगा । साथ ही जागरूकता बढ़ाने के कई उपाय भी इसी क्रम में किये जा सकते हैं । नई पीढी में अन्तरजातीय विवाहों को बढ़ावा देना होगा इसके लिए ऐसे विवाहित जोड़ों को सरकारी, गैर सरकारी ,सहायता, सम्मान और सेवाओं तथा व्यवसाय में प्राथमिकता भी देनी होगीं ।
अन्तरजातीय विवाह करने वालों को पीड़ित करने वाले तत्त्वों को कड़ी से कड़ी सजा भी देनी होगी जिसे भी कानून की शक्ल भी देनी पड़ेगी । आनरकिलिंग पर अभी हाल में सम्मान हत्या उच्चतम न्यायालय ने एक एतिहासिक जजमेन्ट पारित किया है जिसका पूरे देष को स्वागत करते हुए समाज विरोधी तत्वों को निर्मूल करने के लिए अभियान छेड़ना होगा। जाति उन्नमूलन के अन्य अनेक उपाय भी करने पड़ेगें ।अश्प्रस्यता उच- नीच के भेद जड़ से मिटाने के लिए भी आगे आना हूगा साथ साथ धार्मिक, सामाजिकर्रीेतिरिवाज करने होगें । सहभोज, पारिवारिक आवागमन बढ़ाना होगा।
हमें जाति तोड़ कर राष्ट्र जोड़कर एक ऐसे भारत का निर्माण करना होगा जहाँ का प्रत्येक निवासी बस भारतीय हो। आपस में कोई भी मतभेद मनभेद जाति आधारित न हो , तभी हम विष्वश्रेष्ठ और विश्व गुरु होने का सपना साकार कर पायेंगे।
आइये हम सब मिलकर नारा बुलंद करें
जाति तोड़ो राष्ट्र जोड़ो
जय भारत, जय राष्ट्र

Thursday, April 21, 2011

कवि श्री राजकुमार सचान ‘होरी’

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मात्र शब्दों के खेल को कविता न मानने की उद्घोषणा करने वाले कवि श्री राजकुमार सचान ‘होरी’ की कविताएँ हिन्दी में प्रचलित मुहावरों से कुछ अलग किस्म की हैं। कविता में श्रव्य की जगह यदि दृश्य का एहसास होने लगे तो मानना चाहिए कि कवि का बिम्बात्मक रूझान बहुआयामी है। व्यंग्य और विडम्बना का एक नया भावाधार राजकुमार सचान ‘होरी’ का अपना सृजनात्मक लहजा है। हिन्दी कविता धरा में इस नएपन का स्वागत हिन्दी कविता की नई प्रयोगधर्मिता का ही स्वागत है।

श्री ‘होरी’ जी अपनी कई महत्वपूर्ण कृतियों के सृजन द्वारा साहित्य की श्री-सम्पदा की अभिवृद्धि कर चुके हैं तथा कवि के रूप में अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित कर चुके हैं। कवि सम्मेलनों में अपने काव्य व्यक्तित्व की उपस्थिति तथा प्रस्तुति के माध्यम से ही नहीं अपितु रचना की मार्मिकता के कारण श्री ‘होरी’ जिस प्रकार सभी के हृदय में अपना स्थान बना लेने में सक्षम रहते हैं

उ0प्र0 प्रशासनिक सेवा (पी0सी0एस0) में प्रथम प्रयास में 1977 की परीक्षा में सफल। पश्चात्‌ परगनामजिस्ट्रेटों तथा प्रोन्नति के बाद अन्य उच्च पदों पर सेवारत। पिता के सानिध्य में बचपन छुटपुट रचनाएं। अत्यन्त व्यस्तता के बावजूद कविताएं, लेख, कहानियॉं लिखीं जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित।

Wednesday, April 20, 2011

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मात्र शब्दों के खेल को कविता न मानने की उद्घोषणा करने वाले कवि श्री राजकुमार सचान ‘होरी’ की कविताएँ हिन्दी में प्रचलित मुहावरों से कुछ अलग किस्म की हैं। कविता में श्रव्य की जगह यदि दृश्य का एहसास होने लगे तो मानना चाहिए कि कवि का बिम्बात्मक रूझान बहुआयामी है। व्यंग्य और विडम्बना का एक नया भावाधार राजकुमार सचान ‘होरी’ का अपना सृजनात्मक लहजा है। हिन्दी कविता धरा में इस नएपन का स्वागत हिन्दी कविता की नई प्रयोगधर्मिता का ही स्वागत है।

श्री ‘होरी’ जी अपनी कई महत्वपूर्ण कृतियों के सृजन द्वारा साहित्य की श्री-सम्पदा की अभिवृद्धि कर चुके हैं तथा कवि के रूप में अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित कर चुके हैं। कवि सम्मेलनों में अपने काव्य व्यक्तित्व की उपस्थिति तथा प्रस्तुति के माध्यम से ही नहीं अपितु रचना की मार्मिकता के कारण श्री ‘होरी’ जिस प्रकार सभी के हृदय में अपना स्थान बना लेने में सक्षम रहते हैं

उ0प्र0 प्रशासनिक सेवा (पी0सी0एस0) में प्रथम प्रयास में 1977 की परीक्षा में सफल। पश्चात्‌ परगनामजिस्ट्रेटों तथा प्रोन्नति के बाद अन्य उच्च पदों पर सेवारत। पिता के सानिध्य में बचपन छुटपुट रचनाएं। अत्यन्त व्यस्तता के बावजूद कविताएं, लेख, कहानियॉं लिखीं जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित।
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मात्र शब्दों के खेल को कविता न मानने की उद्घोषणा करने वाले कवि श्री राजकुमार सचान ‘होरी’ की कविताएँ हिन्दी में प्रचलित मुहावरों से कुछ अलग किस्म की हैं। कविता में श्रव्य की जगह यदि दृश्य का एहसास होने लगे तो मानना चाहिए कि कवि का बिम्बात्मक रूझान बहुआयामी है। व्यंग्य और विडम्बना का एक नया भावाधार राजकुमार सचान ‘होरी’ का अपना सृजनात्मक लहजा है। हिन्दी कविता धरा में इस नएपन का स्वागत हिन्दी कविता की नई प्रयोगधर्मिता का ही स्वागत है।

श्री ‘होरी’ जी अपनी कई महत्वपूर्ण कृतियों के सृजन द्वारा साहित्य की श्री-सम्पदा की अभिवृद्धि कर चुके हैं तथा कवि के रूप में अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित कर चुके हैं। कवि सम्मेलनों में अपने काव्य व्यक्तित्व की उपस्थिति तथा प्रस्तुति के माध्यम से ही नहीं अपितु रचना की मार्मिकता के कारण श्री ‘होरी’ जिस प्रकार सभी के हृदय में अपना स्थान बना लेने में सक्षम रहते हैं

उ0प्र0 प्रशासनिक सेवा (पी0सी0एस0) में प्रथम प्रयास में 1977 की परीक्षा में सफल। पश्चात्‌ परगनामजिस्ट्रेटों तथा प्रोन्नति के बाद अन्य उच्च पदों पर सेवारत। पिता के सानिध्य में बचपन छुटपुट रचनाएं। अत्यन्त व्यस्तता के बावजूद कविताएं, लेख, कहानियॉं लिखीं जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित।