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Wednesday, April 20, 2011

मात्र शब्दों के खेल को कविता न मानने की उद्घोषणा करने वाले कवि श्री राजकुमार सचान ‘होरी’ की कविताएँ हिन्दी में प्रचलित मुहावरों से कुछ अलग किस्म की हैं। कविता में श्रव्य की जगह यदि दृश्य का एहसास होने लगे तो मानना चाहिए कि कवि का बिम्बात्मक रूझान बहुआयामी है। व्यंग्य और विडम्बना का एक नया भावाधार राजकुमार सचान ‘होरी’ का अपना सृजनात्मक लहजा है। हिन्दी कविता धरा में इस नएपन का स्वागत हिन्दी कविता की नई प्रयोगधर्मिता का ही स्वागत है।

श्री ‘होरी’ जी अपनी कई महत्वपूर्ण कृतियों के सृजन द्वारा साहित्य की श्री-सम्पदा की अभिवृद्धि कर चुके हैं तथा कवि के रूप में अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित कर चुके हैं। कवि सम्मेलनों में अपने काव्य व्यक्तित्व की उपस्थिति तथा प्रस्तुति के माध्यम से ही नहीं अपितु रचना की मार्मिकता के कारण श्री ‘होरी’ जिस प्रकार सभी के हृदय में अपना स्थान बना लेने में सक्षम रहते हैं

उ0प्र0 प्रशासनिक सेवा (पी0सी0एस0) में प्रथम प्रयास में 1977 की परीक्षा में सफल। पश्चात्‌ परगनामजिस्ट्रेटों तथा प्रोन्नति के बाद अन्य उच्च पदों पर सेवारत। पिता के सानिध्य में बचपन छुटपुट रचनाएं। अत्यन्त व्यस्तता के बावजूद कविताएं, लेख, कहानियॉं लिखीं जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित।

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