लक्ष्मण की रेखा कभी , कभी न करिए पार |
उधर दशानन राज है , इधर राम दरबार ||
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जभी सीय ने था किया , लक्ष्मण रेखा पार |
राम राज रोया बहुत , दशकंधर के द्वार ||
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रावण के पुतले जला , क्या कर लेंगे आप |
उन्हें जलाएं जो यहाँ , रावण के भी बाप ||
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अच्छा है डूबें मरें , सरिता में मजधार |
क्या जीना बैठे हुए , यूँ ही इस उस पार ||
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आसमान में खींचिए , इतनी भव्य लकीर |
बस तुझसे ही पूछ कर , खुदा लिखे तकदीर ||
द्वारा .... राज कुमार सचन 'होरी'
preranaaspad.
ReplyDeletebadhaayi
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