सर , मेरा ट्रांसफर कर दीजिये ,
परेशान हूँ , कुछ दया कीजिये |
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किसी नेता से कहलाये हो ,
किसी मंत्री से लिखवाये हो |
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सर, इससे तो आप नाराज़ होंगे ,
राजनैतिक दबाव की संज्ञा देंगे |
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हाँ, कहने को हम यही कहेंगे,
राजनैतिक दबाव ही कहेंगे
पर जिसमे चाहेंगे ट्रांसफर करेंगे ,
और जिसमे चाहेंगे विभागीय कार्यवाही करेंगे |
इस तरह हम आरोपों से बचेंगे ,
और जो चाहेंगे वही करेंगे
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सर , आप कहते हैं तो यही कर लेते हैं ,
किसी मंत्री से लिखा लेते हैं |
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अरे भोलेराम , तुम रहे भोले के भोले
साहब बोले .....
मंत्री से लिखवाना साधन है साध्य नहीं |
मंत्री का लिखा मानने को हम बाध्य नहीं ||
मंत्री के लेखन को उल्लू बना लो ,
फिर उसमे लक्ष्मी बैठा लो,
और चले आओ मेरे कान में गुन गुना लो
और मन चाही जगह अपना ट्रांसफर करा लो ,
हाँ , मलिकाए उल्लू के बिना आओगे तो पछताओगे ,
राजनैतिक दबाव के आरोप में सस्पेंड हो जाओगे |
राज कुमार सचान 'होरी'
great poem which truely deflects the current system of govt and politics
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