न हम पहले ही सुधरे थे , न कोई अब इरादा है ,
भला करना तुम्ही भगवन ,कि अब कुर्मी का क्या होगा ?
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यह पता हम को नहीं , कि हम मुह क्यों चुराते हैं ,
'कुर्मी' क्या कुर्मी कहो ...कच्छप की कुंडली पाली ?
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क्षत्रिय हम बनते तो हैं पर लड़ न पाते आज हम ,
'कूर्मि' हम बस रक्त रंजित , बिन लड़े होते रहे |
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मैं ही नेता और बस मैं ही समर्थक स्वयं का ,
'कूर्मि' यह ही कुर्मियों का राजनीतिक मन्त्र है |
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कभी तो साथ मिल कर के , कि छप्पर छा लिया होता ,
कूर्मि सदियों से युहीं , छप्पर बिना रहते रहे |
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सब कहें अपनी यहाँ , सुनते नहीं फिर और की ,
'कूर्मि' इस कुर्मीपने से , हम रसातल आ गए |
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'कूर्मि'
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