नंग महिमा ...."होरी खडा बाज़ार में "
'होरी' अपने जन्म से ही बाज़ार में खड़े ,खड़े यह देख देख परेशान ,हैरान है कि नंग का बाज़ार में ज्यादा रोब , हनक ,खनक ,झनक ,गनक है पर बाज़ार में ईश्वर की वह बात नहीं है |
ईश्वर के द्वार में लोग माथा झुकाते हैं और मन ही मन बुदबुदाते हैं फिर हताश ,निराश ,दुखी-दुखी उसी तरह शाश्वत बुदबुदाते चले जाते हैं |वह तो भला हो कोढ़ी , भिखमंगे ,अधनंगे ,कटोरा लिए स्थायी रूप से स्थापित भक्तों का और अपने काम में सिद्धाहश्त पुजारियों का , कि ईश्वर का दरबार चल रहा है , नहीं तो .......
उधर नंग दरबारों कि महिमा ही न्यारी है |भक्त सीना फुलाए आते हैं और सीना चौरियाये ही जाते हैं |इनके दरबार सजे हैं |हर गली नुक्कड़ में | ईश्वर के लिए इतने रास्ते नहीं जितने नंग द्वार हैं| हर रास्ता वहीँ जाता है , वहीँ से आता है
अब आज 'होरी कि समझ में आया कि लोग सदियों से नंग से ईश्वर कि तुलना क्यों करते आये हैं ?क्यों कहते आये हैं कि ...."नंग बड़ा ,परमेश्वर ??"
आईये हम भी कुछ साम्य और कुछ वैषम्य तलाशें |ईश्वर के दरबार में चढ़ने वाले सारे चढ़ावे,फूल प्रशाद ,पत्त्रम पुष्पं .........नंग को भी स्वीकार्य हैं , ये समस्त चढ़ावे नंग दरबार में भी श्रद्धा से चढ़ते हैं |ईश्वर कि भाँती ही नंग दरबार में भी नारी को विशेष दर्ज़ा प्राप्त है ,दोनों दरबारों में नारियों कि पूजा होती है |बल्कि नंग दरबार में नारियों की पूजा कुछ अधिक ही सम्पूर्ण कर्मकांडों के साथ पुरे रीति रिवाज से होती है |दोनों दरबारों में गर्भगृह तक पहुँच में नारी भक्त आगे हैं |
प्रार्थना ,आरती ,धूप दीप , भजान ,कीर्तन ,भोजन सबके सब भी ईश्वर की भाँती ही नंग को भी विशेष पसंद हैं |चावल ,अक्षत ,नैवेद्य भी |बल्कि 'अक्षत' तो नंगों को विशेष प्रिय है |'अक्षत' पर नंग की कृपादृष्टि रहती है |ईश्वर के विशेष , दिनों ,पर्वों की तरह नंग के भी पर्व मनते हैं|ईश्वर के हाथों में पुष्प ,पुस्तक ,वाद्य यंत्र ,अश्त्र शश्त्र होते हैं ,ठीक इसी तरह नंग के अनेक हाथ होते हैं और हर हाथ में अश्त्र शश्त्र होते हैं |हाँ ,नंग के वाद्य यंत्र ,अश्त्र शश्त्र अधिक आधुनिक होते हैं |जिसका चाहें जब चाहें बाजा बजा दें |ईश्वर के हाथों के अश्त्र शश्त्र ...वही पुराने तीर , तलवार ,भाला ,त्रिशूल परन्तु नंग के हाथों में रायफल ,रिवाल्वर ,पिस्टल ,एके ४७ ,बम,मिसाईल आदि आदि अत्याधुनिक अश्त्र शश्त्र मिलते हैं |इन्हें वे विशेष कृपापात्र भक्तों को भी परशाद स्वरुप देते हैं | [कृमशः ........]
राज कुमार सचान 'होरी'
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