सत्ता लख कर नंग की , 'होरी' अतिशय दंग |
अब भी बड़ा जहान में , परमेश्वर से नंग ||
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मैं समाज पर क्या करूँ , इससे भारी व्यंग्य |
नंग , नंग मिल -मिल करें , भाँति ,भाँति सत्संग ||
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'होरी' नंगे हैं खड़े , ले कर जूता हाथ |
सज्जन सज्जनता लिए , खड़े झुका कर ,माथ ||
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'होरी' माना व्यर्थ अब , जाना ईश्वर द्वार |
अब तो नंगों द्वार पर , 'होरी' हो उद्धार ||
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कलियुग भी करने लगा , खड़े , खड़े फ़रियाद |
'होरी' खाएं शर्म अब , बड़े , बड़े जल्लाद ||
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नंगों का आँगन यहाँ , नंगों की चौपाल |
'होरी' आज बज़ार में , खड़े ,खड़े बेहाल ||
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नंगा अब राजा हुआ , नंग हुए अब संत |
'होरी' यह आरम्भ है , कैसा होगा अंत ||
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राजा है ध्रतराष्ट्र अब , मुंशिफ हुआ मदांध |
'होरी' चल परदेश अब , घर में बहुत सड़ांध ||
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वे ही तो भगवान् अब , वे ही अपने राम |
'होरी' खड़ा बज़ार में , करता नंग प्रणाम ||
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काले तो नंगे चलो , यहाँ श्वेत अब नंग |
सप्त रंगों की नंगई , लख अब 'होरी' दंग ||
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आँखों पट्टी बाँध कर , आज कर रहे न्याय |
'होरी' फरियादी कहो , कहाँ , कहाँ अब जाय ||
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शब्द शब्द में दंश हैं , बात , बात में घात |
यह प्रभात है तो चलो , इससे अच्छी रात ||
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राज कुमार सचान 'होरी'
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