संक्षेप में उपसंहार स्वरुप कहा जा सकता है की ईश्वर की सम्पूर्ण वस्तुएं नंग
दरबार में धड़ल्ले से पायी जाती हैं , परन्तु नंग दरबार की समस्त वस्तुएं .
सुविधाएं ईश्वर को भी नसीब नहीं | इस द्रष्टि से नंग दरबार ईश्वर दरबार से उच्च स्थान पर है | आधुनिक साज सज्जाओं से सुसज्जित है | श्रेष्ठ है |
अब आयें दोनों की शक्तियों , रूपों की तुलना भी करलें .........
ईश्वर विभिन्न रूपों ...साकार और निराकार मिलते हैं , नंग भी बहुरूपधारी
वह भी साकार , निराकार दोनों है |दोनों के विभिन्न रूपों की पूजा होती है |दोनों हर कहीं कण कण में व्याप्त हैं |दोनों ही द्रश्य और अद्रश्य शक्तियों वाले हैं |दोनों के ही भय से संसार के प्राणी डरते हैं |ईश्वर को तो लोग हलके में भी ले लेते हैं ,पर नंग से तौबा ! लोग तो लोग उनके कुटुंब कांपते हैं | लोगों के अंग अंग कापते हैं |अंग अंग के रोयें शिहर शिहर कर रोने लगते हैं |
दोनों श्रजन , पालन और संहार करते हैं |दोनों एक साथ त्रिदेव हैं |म्रत्यु देने की शक्ति में नंग ईश्वर से बीस है |म्रत्यु देने की भाँती भाँती की रीतियाँ हैं |तुरंता म्रत्यु के साथ साथ तड़पा , तड़पा कर म्रत्यु देने में दोनों बराबर के मित्र हैं |हाँ , तड़पाने वाली म्रत्यु नंग को विशेष प्रिय है ,उसका
प्रिय शगल है |
'होरी' दोनों की कथा अनंत है | हरि अनंत हरि कथा अनंता की ही भांति 'नंग अनंत , नंग कथा अनंता |दोनों की कथाओं के अध्यन और शोध से मैं पी एच डी कर इश्वरी और नंगई दोनों में डाक्टर बनना चाहता
था |नंग बड़ा की परमेश्वर पर मुझे निष्कर्ष देना था |निष्कर्ष स्वरुप 'होरी' यह प्रतिपादित करता है की नंग भले ही सतयुग, त्रेता, द्वापर में परमेश्वर से
पीछे रहा हो परन्तु कलियुग में नंग ने निर्णायक बढ़त प्राप्त कर ली है |
परमेश्वर श्रेष्ठता और वर्चास्वा की लड़ाई में नंग से हर गया है | ईश्वर मंदिरों , मस्जिदों, चर्चों , गुरुद्वारों तक सीमित रह गया है |
नंग तो गली , गली , नुक्कड़ , नुक्कड़ में कण कण में व्याप्त है |उसकी पूजा , अर्चना रात दिन अबाध चलती रहती है |
कभी अपने जाना की नंग से ईश्वर बाज़ी क्यों हार गया ?यह शोध भी मैंने किया है |जब जीव स्वर्ग में जन्म के पूर्व ईश्वर
के समीप होता है तब वह केवल ईश्वर को ही जानता है , नंग को नहीं |अब
ईश्वर उसे जन्म लेने के लिए संसार में भेज देता है |ईश्वर जीव का साथ छोड़ देता है जीव जन्म के समय रोता है ,चिल्लाता है .....उसकी नज़र में ईश्वर दिखाई नहीं पड़ते , पर देखता है अपने को नग्न ,नंग धडंग |उसने देखा जीव जन्म से ही नंगा है ,व्श्त्र विहीन है |नंगई उसके अन्दर तक घर कर जाती है ,
वह मुस्कराने लगता है ... बच्चा बचपन में पहला पाठ ही नंगई का सीखता है
[क्रमशः ......]
राज कुमार सचान 'होरी'
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