होरी के दोहे
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१--
जब तक धर्मों की नहीं ,मैंने चखी अफ़ीम ।
मेरे लिये समान थे , दोनों राम रहीम ।।
२--
लक्ष्मण रेखा को कहीं, कभी न करिये पार।
उधर दशानन राज है, इधर राम दरबार ।।
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राजकुमार सचान होरी
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