होरी कहिन
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१--
जभी सीय ने था किया ,लक्ष्मण रेखा पार ।
राम राज रोया बहुत, दशकन्धर के द्वार ।।
दशकन्धर के द्वार ,हुआ था युद्ध भयानक ।
राम - दशानन युद्ध ,याद है अभी कथानक ।।
लक्ष्मण रेखा पार न करिये , आप कभी ।
होरी निश्चित युद्ध पार हम , करें जभी ।।
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२--
अच्छा है डूबें मरें , सरिता में मँझधार ।
क्या जीना बैठे हुये , यूँ ही इस उस पार ।।
यूँ ही इस उस पार , बैठ कर मक्खी मारें ।
रोज क़ीमती समय ,व्यर्थ में यूँ ही टारें ।।
तभी ज़िन्दगी भर खाते ,गच्चे पर गच्चा ।
होरी चलते रहना ही , जीवन में अच्छा ।।
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३--
होरी मेरे देश में , जाति धर्म के रोग ।
आपस में बिखरे हुये ,हम भारत के लोग ।।
हम भारत के लोग , सदा ख़ुद से टकरायें ।
भाई बन्धु लगें दुश्मन , तो दुश्मन भायें ।।
मीर जाफरों , जयचन्दों के अब भी घर ।
भारत माता दु:खी , डालिये नज़र जिधर ।।
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राजकुमार सचान होरी
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