'होरी खड़ा बज़ार में' शीर्षक से एक व्यंग्य लेख दिन प्रतिदिन की घटनाओं पर आरंभ कर रहा हूँ , कृपया प्यार दीजिये , आनंद लीजिये , बज़ार में कुछ खरीदिये , कुछ बेचिए , नगद ,उधार , लीजिये , दीजिये , बज़ार के बाजारुपन को झेलिये , और सब के साथ लीजिये आनंद बज़ार में खड़े होने का , 'होरी' के साथ | आईये , पढ़ें ................
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राज कुमार सचान 'होरी'
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राज कुमार सचान 'होरी'
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