मैंने हिंदी साहित्य में कुछ वर्षों पूर्व 'कायिकु' विधा को जन्म दिया था |सिद्ध किया था कि लघुतम कविताओं का जन्म भारत में हुआ था , न कि जापान में | 'कायिकु' और 'स्वदेशी कायिकु , विदेशी हाईकु' विषय पर मेरी दो पुस्तकें आ चुकी हैं |प्रस्तुत हैं कुछ कायिकु ..............
'धर्म अफीम
खा रहे पिनक में
धर्म नशेड़ी '
'सशक्त राष्ट्र
के वास्ते
लौहपुरुष के रास्ते '
' दलदल भूमि में
धंस गए हैं हम
दादुर भांति'
'जाति व्यूह में
अभिमन्यु फंसा
भारत सा ही '
'है रस नहीं
पीर अंतस नहीं
कवि कायिकु '
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राज कुमार सचान 'होरी'
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