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Sunday, June 26, 2011

HORI KHADAA BAZAR MEN 6..SAMMAAN HATYA [2]

'होरी' काल्पनिक सम्मान का लबादा ओढ़े लोगों से रूबरू होने के लिए फिर बढ़ा .....एक भाई से पूछा ..'एक बहन की हत्या कर दी , एक  पिता से पूछा ...'एक पुत्री की हत्या कर दी' ,एक दादा से पूछा ...'एक पौत्री की हत्या कर दी' किस सम्मान के लिए ?अब तो हत्या के अपराधी भी हैं , अपमान और बढ़ा  |वे सब के सब टूट चुके थे ,पर ऐंठ रहे थे ,अकड़ में थे , काल्पनिक मूंछों में ताव दे रहे थे ..बोले ..'लड़की घर का सम्मान है ,हमने उसको मारा सम्मान बचाया |'होरी' पागल बना उनके चेहरों को पढता रहा ......वीरान ,भाव शून्य चेहरे व्यर्थ के भ्रम ,अहम् में दीप्त  ,सम्मान ह्त्या के जघन्य अपराधी ये पशु होते तो अच्छा होता |
                                       चलते ,चलते एक जागरूक ,समाजसेवक टाईप के व्यक्ति मिले , पूछा  ...'आप कुछ कहें ' 'क्या कहें ,सुप्रीम कोर्ट तक कह रहा है , कुछ हो रहा है ?फिर श्राप देते हुए बोले ...'हे भगवान् इनको औलादें न देना | आजकल मेरे वरिष्ठ साथी , इंडिया फायिट्स कास्टिस्म  फेम वाले श्री श्री  ००८  हरिपाल सिंह ,जिनकी चर्चा गली ,गली  नुक्कड़ ,नुक्कड़  है , अचानक एक जगह मिल गए |पूछा ...'सम्मान हत्या पर कार्यक्रम ?'  बोले , बोले क्या दहाड़े ..कहा
'हमारे संगठन में आंयें , अंतरजातीय विवाह करें , कराएं , सुरक्षा पायें , सम्मान  ह्त्या के अपराधियों को जेल भिजवायें | उनके हौसले
को प्रणाम कर आगे बढ़ा  |
                                    'होरी' के अन्दर का कवि जाग चुका था ....
'सम्मान  ह्त्या करने वालो !
जाति धर्म के ओ रखवालो !
भारतीय  तुम  वंश      नहीं   |
तुम  कागा   हो    हंस     नहीं  ||'
                                     सम्मान ह्त्या करने वालों को सरे आम फांसी की सजा न्यायालय दे  ,ताकि भारत को सम्मान मिले , भारतीय को सम्मान मिले .........हम फिर कह सकें  ..... 'वसुधैव कुटुम्बकम '|
                                      राज कुमार सचान 'होरी'

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